लेखक नाभादास का जन्म अनुमानित 1550 ईस्वी में इनका निधन अज्ञात है जन्म स्थान दक्षिण भारत में शैशव मैं पिता की मृत्यु और काल के कारण माता के साथ जयपुर में प्रवास।
दीक्षागुरु : स्वामी अग्रदास (अग्रअली) वृंदावन में उनका स्थाई निवासर कृतियां : भक्तमाल, अष्टयाम
छप्पय एक छंद है जो इसठ पक्शित का गेय पढ़ है’ भक्तमाल भक्त चरित्रों की माला.
“कबीर”
भगति विभूख जे धर्म सो मलक -में करिः गए। योग यज्ञ व्रत दान भजन बिनु तुच्छ दिखाए। हिंदू तुरक प्रमान रमैनी सबदी साखी पक्षपात नहि बचन सबहिके हितकी भाषी । आरुद दशाहने जगत पै. मुख देखी नाही भनी ।’ कलीर कानि राखी नहीं, वर्णाश्रम घट दर्शनी।
“सूरदास”
उक्ति चौन अनुप्रास वर्णं अस्शिति आतिभारी वत्चन प्रीति निर्वाही अर्थ अदभुत तुकधारी” प्रतिबिंबित दिविं दृष्टि हृदय हरि लीला भासी । जन्म तामे गुम रूप सबहि रसना परकासी विमल बुद्धि हो तासुकी, जो सह गुन प्रत्नान हारे। सूर कवित सुनि कोन कवि जो नहिं शिरचालन करें।
अभ्यास प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1. नाभादास ने छप्परा में कबीर कीकिन विशेषताएं का उल्लेख लिया है। उनकी क्रम से सूची बताइए?
उत्तर:- नागादास ने कबीर की निम्न विशेषताओं का उल्लेख किया है।
<1> कबीर की मति आते गंभीर और डो -करण भक्तिरस से सरस था।
<2> वे जाति-पाति एवं वर्णाश्रम का कोई महत्व नहीं देते थे
<3>कबीर ने केवल गंगवचवितं तो ड श्रेष्टा माना है।
<4>भगवद्भक्ति के अतिरिक्त जितने हार्म हैं। उन सबको कबीर ने शहा एवं त्यरी बताया है।
<5>कबीर पक्षपात नहीं करते हैं।
प्रश्न 2. मुख देही नाही भनी” का क्या हैं? कबीर पर यह कैसे लागू होता
उत्तर:- मुख देखकर नहीं कहना। कबीर एउ कवि है जिन्होंने कभी भी मुख देस बात नहीं की। मन्त्र को सच कह में उन्हें कोर्ड परिवाह नहीं গা तो पक्षपात नहीं करते थे। तो रो भी कहते है कि मरत को देखर हिंदू-मुसलमान होने क ए हैं। रो स नहीं लगाया जा सकता बेकार है। भवसागर से पार हो एकमात्र रास्ता है। भगवद्धतित
प्रश्न 3. सूर के काव्य की तीन विशेषताओं ला उल्लेख कवि ने किया है।
उत्तर:- कति नाभादास ने सूर के काव्य के चमत्कार, अनुप्रास एवं उनकी भाषा की सुंदरता की. सराहना की है। इनकी भाषा में उपस्थित’ तुक’ की प्रशंसा की है। सूर ने अपने कात्य मैं कृष्ण के जन्म कर्म, गुण, रूप आदि को भी दर्शाया है। कवि नाथ दास कहते है। कि जो सूर के काव्य को सुनेगा, उसकी बुद्धि विमल हो जाती है।
प्रश्न 4. सूर कविता मुनि कौन कति, जो नहि शिरचालन करें?
उत्तर:- प्रस्तुत पक्ति नामादास द्वारा उचित हिप्पये कविता से लिया गया है। कति कहते हैं कि’ कौन ऐसा कवि है जो सूरदास जी की कविता सुनकर प्रसन नहीं हो और भाव-विभोर होकर सिर न हिलाया।
प्रश्न 5. पक्षपात नहि बचन सबहिक हितकी भाषी इस पक्ति में कबीर के लिए गुण काः परिचय मिलता है?
उत्तर:- पक्षपात नहि बत्चन सबहिके हितकी भाषी में राह दशाया गया है कि कबीर हिंदू मुसलमान, आरी अनार में कोई भेद नहीं रखते है हो पक्षपात नहीं करते है बल्कि सबके हित की बात करते हैं। वे सिद्धांत -वादी है। और सिद्धांतो का ही लेकर बढ़ते है।
प्रश्न 5. कविता में तुक का क्या महत्व है।
उत्तर:- इन छप्पयो के संदर्भ में स्पस्टत कविता में तुक का मतलब हुआ। कविता का लयबद्ध सानि संगितामतमक होना। कविता: में जितनी लयया संगीत होगा वह उतनी ही आकर्षक होगा । कवि के शब्द चयन की प्रतिभा कविता के लय से ही होती है। कंति नाभादास द्वारा इस छप्पय में जी तुक का प्रयोग किया गया है। वो हिन्दी साहित्य में दुर्लभ है। अतिभारि तुकधारी लीलाभासी- परकासी जैसा। तुक बहुत ही मनोहर है।.
प्रश्न 5. कबीर कानि राखी नहीं से क्या तात्रार्प है?
उत्तर:- कबीर ने चार वर्णाश्रम तथा छह दर्शनो मे से किसी का महत्व नहीं दिया उन्होंने केवल भगवद्भकित को ही संसार रूपी भवसागर पार करने का साहान बताया है।
हृह-दर्शन- सरख्या, योग, न्याय वैशेविष मीमांसा और वेदान्त, चार, वणीश्रम शूद्र वैश्य, क्षत्रिय, ब्राहाणा
प्रश्न 8. कबीर ने भक्ति को कितना महत्व दिए?
उत्तर:- कबीर ने भक्ति को सर्वश्वेस्य मानी मनुष्य को भगवन्द्वक्ति के अलात काका इस भवसागर को पार करने व दूसरा मार्ग नहीं है। वे कहते हैं कि मनुष्य को भक्ति करते समय मन को शुद्ध रखना चाहिए। ते क है कि खभक्ति से विमुख जित्ने भी धर्म है। सभी अधर्म है। भक्ति के अतिरिक्त सब कुछ त्यर्थ है।
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